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लोककथा

चतुर कुत्ता

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


एक चतुर कुत्ता एक दिन बिल्लियों के एक झुण्ड के पास से गुजरा।

कुछ और निकट जाने पर उसने देखा कि वे कोई योजना बना रहीं थीं और उसकी ओर से लापरवाह थीं। वह रुक गया।

उसने देखा कि झुण्ड के बीच से एक दीर्घकाय, गम्भीर बिल्ला खड़ा हुआ। उसने उन सब पर नजर डाली और बोला, "भाइयो! दुआ करो। बार-बार दुआ करो। यक़ीन मानो, दुआ करोगे तो चूहों की बारिश जरूर होगी।"

यह सुनकर कुत्ता मन-ही-मन हँसा।

"अरे अन्धे और बेवकूफ़ बिल्लो! शास्त्रों में क्या यह नहीं लिखा है और क्या मै, और मुझसे भी पहले मेरा बाप, यह नहीं जानता कि दुआ के, आस्था के और समर्पण के बदले चूहों की नहीं हड्डियों की बारिश होती है।" यह कहते हुए वह पलट पड़ा।


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